प्रथम विश्व युद्ध के तात्कालिक कारन, आरंभ , प्रभाव ,  पूरी जानकारी , Full details of World War First    #gkpadhoindia :  


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प्रथम विश्व युद्ध के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण बाते  :  

  • समयकाल :  28 जुलाई 1914 से 11 नवंबर 1918 तक
  • मरने वालों की संख्या  -  एक करोड़ सत्तर लाख  ( जिसमे १ करोड़  10 लाख सिपाही और लगभग 60 लाख आम जनता की मृतु हुई थी ) 
  • जख्मी या घायल होने वालों की संख्या : लगभग  ज़ख़्मी लोगों की संख्या 2 करोड़ थी . 
  • इस विश्व युद्ध में एक तरफ रूस, फ्रांस, ब्रिटेन, संयुक्त राष्ट्र अमेरिका और जापान था. तो वही दूसरी तरफ ऑस्ट्रो- हंगेरियन, जर्मनी और ओटोमन एम्पायर था . 
  • प्रथम विश्व युद्ध में अमेरिका केवल साल 1917- 18  के दौरान संलग्न रहा था . 
  • Germany  ने 1 अगस्त 1914 को रुस पर आक्रमण कर दिया  और 3 अगस्त 1914 को फ्रांस  पर आक्रमण कर दिया।
  • इसके पश्चात्  8 अगस्त 1914 को इंग्लैंड (England)  भी वर्प्रड वार first  या प्रथम  विश्व युद्ध में शामिल हुआ।
  • इसके पश्चात् अन्य देश इटली  26 अप्रैल 1915 को  प्रथम विश्व युद्ध में शामिल हुआ।
  • तत्पश्चात 6 अप्रैल 1917 को अमेरिका (America) प्रथम विश्व युद्ध में शामिल हुआ। क्योंकि जर्मनी के यू-बोट द्वारा इंग्लैंड के लूसीतानिया नामक जहाज को डुबो दिया गया था। इस जहाज में मरने वाले 1153 लोगों में 128 व्याक्ति अमेरिका के थे। जिस कारन से अमेरिका को भी प्रथम विश्व युद्ध में भाग लेना पड़ा था . 

प्रथम विश्वयुद्ध होने का वजह या कारण (Reasons

 for word war First in hindi ) : 

प्रथम विश्व युद्ध होने के कई कारण है ये रुद्ध इतिहास में लड़ा जाने वाला महा विनास करी युद्ध था .यह यद्ध होने के लिए जो कारण था वह निम्न लिखित है - 

1. तात्कालिक कारन : 

विश्व युद्ध का तात्कालिक कारण ऑस्ट्रिया के राजकुमार फर्डीनेंड की बोस्निया की राजधानी सेराजेवों में हत्या होना था।"  

प्रथम विश्वयुद्ध का तात्कालिक कारन आस्ट्रलिया द्वारा सर्बिया पर आक्रमन करना था . सर्बिया के कुछ आतंकवादियों ने २८ जुलाई २०१४ को बोर्सिया के प्रमुख शहर सेराजियो में आस्ट्रलिया के उत्तराधिकारी फर्डिनांड और उसकी धरम पत्नी दोनों की गोली मरकर हत्या कर दिया था . जिसके कारन आस्ट्रिया ने सर्बिया को कठोर दंड देने का निश्चय की या जिसके लिए आस्ट्रिया ने सर्बिया से उसकी कुछ शरतों को मानने के लिए कहा .

शर्बिया ने भी लगभग आस्ट्रिया के द्वारा रखी गई सभी शर्तों को स्वीकार कर लिया था लेकिन दो शर्ते को मानने से इंकार कर दिया . ये दो शर्त ये थी की आस्ट्रिया के अधिकारियों द्वारा सर्बिया में जाँच पड़ताल में भाग लेने की भी मांग शामिल थी . जिसको शर्बिया द्वारा इंकार कर दिया गया था .

आस्ट्रिया के द्वारा भेजे गये इन शर्तों के सम्बन्ध में सर्बिया ने अंतररास्ट्रीय नयायालय द्वारा जो भी निर्णय जारी होगा उसे मानने के लिए बात कही . परन्तु आस्ट्रिया ने सर्बिया के द्वारा अपने द्वारा भेजे गये शर्तों को अस्वीकार करने के कारन और असंतोषप्रद उत्तर प्राप्त होने के कारन 28 जुलाई 1914 को ई. को सर्बिया के विरुद्ध रुद्ध की घोषणा कर दिया .

2. उग्र रास्ट्रीयता : 

प्रत्येक राष्ट्र अपने विस्तार सम्मान तथा गौरब की वृद्धि करने के लिए दुसरे कमजोर देशों को अपने अधीन रखना चाहते थे . या उनको नस्त करना चाहते थे अथवा अपने मतलब के लिए उन देशों का शोषण करना चाहते थे . फ़्रांस , जर्मनी आदि देशों की साम्राज्यवादी महत्वाकंछाओ ने रास्ट्रीय भावना को उग्र रूप दिया . जिसके फलस्वरूप रुद्ध की स्थिति बनी . 

3. फ्रांस और जर्मनी के बिच साम्राज्यवादी प्रतिस्पर्धा : 

यहाँ पर एक और कारन यह भी इस युद्ध होने का की जर्मनी को उपनिवेश पाने की इच्छा इंग्लॅण्ड के  बराबर थी . आर्थात जर्मनी भी अपना साम्राज्यवाद चाहता था . वह भी दुसरे देशों का स्वार्थ वस शोषण करना चाहता था .  
जर्मनी द्वारा युद्धपोत इम्प्रेटर और किल नाहर के निर्माण ने जर्मनी और इंग्लेंड को एक दुसरे को प्रतिद्वंदी या दुश्मन बना दिया . 

4. गुटों का निर्माण : 

साम्राज्यवादी प्रतिस्पर्धाओं के और उपनिवेशों की चाह में गुटों का निर्माण हुआ , क्योंकि स्थिति संघर्स और टकराव की हो चुकी थी . जिसमे विभिन्न गुटों की स्थापन हुआ . 

1882 में , जर्मनी , आस्ट्रिया , और इटली ने त्रिगुट की स्थापना किया . 
1907 में इंग्लेंड फ़्रांस और रूस ने  त्रिदेशीय संधि कि . या

समस्त देशों में संकट कालीन स्थितियों से निपटने के लिए हथियारों और अस्त्र शस्त्र को इकट्ठा करने की होड़ प्रारंभ हो गया . और अंततः दुनिया का विनाश कारी युद्ध प्रथम विश्व युद्ध प्रारंभ हो गया . 

5. कुटनीतिक संधीयां : 

चूँकि उस दौरान साम्राज्यवादी सत्ता और शीमा बढ़ाने की होड़ लगी हुई थी . जिसके कारन अनेको कुटनीतिक संधीया हुई . ये संधीयां कुछ इस प्रकार है - 

जर्मनी के बिस्मार्क ने जो की फ्रांस को पराजित कीया था  उसे जर्मनी की सुरक्षा की चिंता सताने लगी जिसके कारन उसने जर्मनी की सुरक्षा को देखते हुए आस्ट्रिया और इटली से संधियाँ कर लिया .  और इस प्रकार उनके मद्य त्रिगुट का निर्माण हुआ . 

इसी प्रकार फ्रांस ने भी अपनी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए रूस और इंगलैंड से म्मित्रता संधि या सुरक्षा संधि कर लिया . जिससे उनके मध्य त्रिप्पल एतांत का गठन हुआ .

कुटनीतिक संधियों के चलते यहाँ इस प्रकार के कुत्निक संधीयां स्थापित हो गई . जिससे निरंतर अफवाहों और असुरक्षा के चलते युद्ध जैसे स्थिति निर्मित हो गई और अंततः परिणाम यह हुआ की प्रथम विश्वयुद्ध हुआ  . 

6. अंतरास्ट्रीय अराजकता : 

अंतरास्ट्रीय अराजकता के कारन संयावाद और सस्त्रिकरण की दौड़ और तेज हो गई . जिसके फलसवरूप प्रथम विश्व युद्ध हुआ . 

यहाँ अंतरास्ट्रीय अराजकता कुछ इस प्रकार बढ़ा की - 
1904-05 में  रुस और जापान के मध्य युद्ध हुआ . , जर्मनी और जापान  के मध्य युद्ध , और आस्ट्रिया द्वारा बोस्निया और हर्जेगोविना को अपने साम्राज्य में मिलाने और बाल्कन युद्ध जैसी घटनाओं के द्वारा हि अंतर रास्ट्रीय अराजकता की उत्पत्ति या जन्म हुआ . 

7. व्यापारिक और औपनिवेशिक प्रतिस्पर्धा : 

उपनिवेश स्थापित करने तथा अपने रास्त्रों के उत्पादित वस्तुओं की खापत के लिए उपनिवेशों में व्यापर के प्रसार हेतु यूरोपीय राष्ट्रों में आपसी होड़ प्रथम विश्व युद्ध होने का प्रमुख कारन या वजह था .  

8. जर्मन और फ्रांस के बिच प्रतिस्पर्धा : 

उत्तरी अफ्रीका में मोरक्को को लेकर जर्मनी और फ्रांस में प्रतिस्पर्था बढ़ी . 1904 इसा में फ्रांस ने ब्रिटेन के साथ गुप्त संधि करके मोरक्को में हस्त छेप आरम्भ कर दिया . जर्मन ने भी प्रतिक्रिया स्वरुप मोरक्को को फ्रांस के विरुद्ध भड़काया . इस स्थिति से निपटने के लिए फ्रांस को मध्य अफ्रीका स्थित अपने एक उपनिवेश कांगो को जर्मनी को देना पड़ा . 

9.  सर्वस्लाव आन्दोलन और बल्कन की राजनीती : 

चूँकि बाल्कन चछेत्र के कई राज्य तुर्की के अधीन थे . तुर्की और आस्ट्रेलिया के छेत्रों में ज्यादातर स्लाव रहते थे . स्लाव रूस के समर्थन से बहुल राज्य सर्बिया को स्वतंत्र करने के लिए आन्दोलन प्रारंभ कर दिया . 
आस्ट्रिया ने इस आन्दोलन का विरोध किया . और स्लाव राज्यों बोर्स्निया और हर्जेगोविना पर अधिकार कर लिया . 
इस प्रकार आस्ट्रिया और रूस एक दुसरे के प्रतिद्वंदी बन गये  . 

10 . समाचार पत्रों की भूमिका : 

इस समय औध्योगिकरन के कारन लगभग सभी देशों में समाचार पत्रों का प्रकाशन होता था . समाचार पत्रों में उग्र रास्ट्रीयता की भावना से प्रेरित होकर बहुत सी घटनाओ को इस प्रकार प्रस्तुत किया गया की जिससे जनता में उत्तेजना बढ़ी जिससे शांति पूर्ण ढंग से समझोता करना कठिन हो गया . 

युद्ध के समाप्ति के पश्चात् की स्थिति या माहौल : 

प्रथम विश्व युद्ध के समाप्त होने के पश्चात 11 november 1918  को पेरिस में एक शांति सम्मलेन का आयोजन हुआ था . जिसमे लगभग 27 देशों ने भाग लिया था . जिसमे कुछ शर्ते रखी गई शांति संधियों के लिए जिसको जिसको केवल तिन देश मिलकर हि तय कर रहे थे . ये तिन देश फ़्रांस अमेरिका और ब्रिटेन थे . 

इस शांति सम्मलेन की शर्तों और कानूनों को बनाने के लिए जिन रास्ट्र अध्यक्षों ने ने आपना महत्वपूर्ण योगदान दिया था उनके नाम कुछ इस प्रकार है - 

  • वुडरो विल्सन : आप अमेरिका के राष्ट्रपति थे .  , 
  • जार्ज क्लेमेसो : आप फ्रांस के प्रधान मंत्री थे .  , 
  • लायर्ड जार्ज :  आप ब्रिटेन के प्रधान मंत्री थे .

प्रथम विश्व युद्ध के राजनैतिक परिणाम :  

प्रथम विश्वयुद्ध एक महा विनाश करी युद्ध था . जिनके अनेक दूरगामी परिणाम हुए . 
इस युद्ध के विभिन्न राजनैतिक परिणाम कुछ इस प्रकार है  -

1. निरंकुश राज्यों की समाप्ति या पतन : 

प्रथम विश्वयुद्ध ने विभिन्न देशों जैसे जर्मनी रूस तुर्की जैसे देशों के निरंकुश राजतंत्रों को समाप्त कर दिया था . साथ हि उन पर आश्रित सामंती प्रथा को भी समाप्त कर दिया था . 

2. नए राज्यों क निर्माण : 

प्रथम विश्वयुद्ध के परिणाम स्वरुप नए राज्यों का भी निर्माण हुआ . ये नए राज्य कुछ इस प्रकार है - चेकोस्लोवास्किया , युगोस्लाविया , लिथुआनिया , फ़िनलैंड , एस्टोनिया , पोलैंड आदि . 

3. जनतंत्र की स्थापना और विकाश : 

प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात् विभिन्न देशों में जनतंत्रात्मक शासन की स्थापना हुआ . ये देश कुछ इस  प्रकार है - पोलैंड , हंगरी , चेकोस्लोवाकिया , लिथुआनिया , एस्टोनिया , लेटविया आदि . .

 4. संयुक्त राज्य अमेरिका का प्रभाव में वृद्धि : 

प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात् अमेरीका यूरोपिय राष्ट्रों का मुखिया बन गया  और संपूर्ण यूरोप के व्यापर और वाणिज्य पर अमेरिका क कब्ज़ा हो गया . 

 5. शस्त्रीकरण की होड़ : 

प्रथम विश्वयुद के दौरान वार्साय की संधि हुई जिसके अंतर्गत निः शस्त्रीकरण की योजना थी जिनका प्रयोग धुरी रास्त्रों सहित जर्मनी को शक्ति हिन् करने के लिए हुआ था . कुछ समय पश्चात इसके स्थान पर शस्त्रीकरण की भावना प्रबल हुई और आधुनिक अस्त्र और शास्त्र का निर्माण होने लगा . 

6. नवीन विचार धाराओ का उदय : 

प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात् कालांतर में इस सदी के अंत तक यूरोप के अनेक देशों में समाजवाद का प्रसार हुआ था . इटली में फासीवाद , और जर्मनी में भी नाजीवाद और जापान में सैन्यवाद का उदय हुआ . रूस में भी इस दौरान बोल्सेविक क्रांति से साम्यवाद का प्रभाव बढ़ा . 

वर्कीसाय की  संधि या द्वितीय विश्वयुद्ध का आरम्भ : 

वर्साय की संधि जर्मनी के साथ हुआ था . जो की 28 jun जून 1919 को हुआ था . इस युद्ध में जर्मनी को युद्ध का दोषी बताया गया था . जिसके कारन विभिन्न प्रकार के दबाव जर्मनी के ऊपर बनाए गये थे . जिसमे जर्मनी से 6 अरब 50 करोड़ पौंड की धनराशी हर्जाने के रूप में मांगी गई थी . 

यह सन्धि एकतरफा संधि था . इस संधि को मानने के लिए जर्मनी को मजबूर किया गया था . जिससे जर्मन रास्ट्र वादी इस संधि के बाद खुद को अपमानित महसूस करने लगे . 

वर्साय की संधि नाम से इसी संधि को जाना जाता है . इसी दोष पूर्ण संधि से अगले भयानक युद्ध का बीजारोपण हुआ जिसका फलस्वरूप विश्व में द्वितीय विश्व युद्ध हुआ था . जो की प्रथम विश्व युद्ध से लाखों गुना भयानक था. ऐसा युद्ध न कभी उस समय के इतिहास में हुआ था और न हि कभी अब भविष्य में होगा . 

द्वितीय विश्वयुद्ध के सम्बन्ध में जानकारी आपको आगे के आर्टिकल में विस्तार से देंगे. 

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AUTHOR : MR. SURAJ SINGH JOSHI

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