ज्वार-भाटा क्या है और कैसे उत्पन्न होता है? या कारण , प्रकार ( TYPES OF TIDES ) , रोचक तथ्य, ज्वार भाटा के लाभ या महत्व [What is tides and how does it occur? causes, types of TIDES, facts and its benefits in hindi] #gkpadhoindia



ज्वार-भाटा क्या है और कैसे उत्पन्न होता है? TYPES OF TIDES :

ज्वार-भाटा (tide) वे तरंग हैं…In fact वे सागरीय तरंगे हैं, जो पृथ्वी, चाँद और सूर्य के आपस के आकर्षण से उत्पन्न होते हैं. जब समुद्री जल ऊपर आती है तो उसे “ज्वार” और जब नीचे आती है तो “भाटा” कहते हैं. चंद्रमा के आकर्षण शक्ति का पृथ्वी के सागरीय जल पर सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है.

खुले सागरों में चूँकि यह उतार-चढ़ाव कुछ ही मीटर के होते है, इसलिए आसानी से नहीं दिखते । किन्तु महाद्वीपीय सागरों ये में उतार-चढ़ाव 6-7 मीटर से 10-15 मीटर तक के होते हैं ।ज्वार-भाटा चंद्रमा और सूर्य के पृथ्वी पर गुरुत्वाकर्षण बल द्वारा खिंचाव के कारण उत्पन्न होता है.

ज्वार-भाटा की उत्त्पत्ति का प्रमुख कारण :ज्वार-भाटा की उत्त्पत्ति का प्रमुख कारण है - गुरुत्त्वाकर्षण की शक्ति । ध्यान देने की बात यह है कि गुरुत्त्वाकर्षण की इस शक्ति में केवल पृथ्वी की शक्ति नहीं, बल्कि सूर्य और चन्द्रमा की शक्ति शामिल हैं । वैज्ञानिक आइज़क न्यूटन ने ज्वार-भाटा की क्रिया को समझाते हुए बताया था कि यह घटना चन्द्रमा तथा सूर्य के आकर्षण के कारण उत्पन्न होती है ।

ज्वार की उत्त्पत्ति चन्द्रमा और सूर्य के आकर्षण बल के कारण होती है । गुरुत्त्वाकर्षण के नियम के अनुसार पृथ्वी का वह भाग, जो चन्द्रमा के सामने पड़ता है, वहाँ आकर्षण बल काम करता है । इसलिये यहाँ उच्च ज्वार उत्पन्न होता है । जबकि, जो भाग चन्द्रमा से सबसे अधिक दूरी पर स्थित होता है वहाँ अपकेन्दीय बल होता हैं इसलिए वहाँ निम्न ज्वार उत्पन्न होता है ।

उल्लेखनीय है कि सूर्य चन्द्रमा से बड़ा होने के कारण अधिक आकर्षण बल रखता है। लेकिन चूँकि चन्द्रमा सूर्य की अपेक्षा पृथ्वी के अधिक निकट है, इसलिए चन्द्रमा का आकर्षण बल अधिक प्रभावशाली है । सूर्य का आकार चन्द्रमा के आकार से तीन अरब गुना बड़ा है । लेकिन वह चन्द्रमा की अपेक्षा तीन सौ गुना अधिक दूर स्थित है । इसलिए ज्वार उत्पन्न करने की चन्द्रमा की शक्ति सूर्य की अपेक्षा 2.17 गुना अधिक है ।


ज्वार - भाटा के प्रकार :

1. दीर्घ अथवा उच्च ज्वार (SPRING TIDE)

अमावस्या और पूर्णिमा के दिन सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी तीनों में एक सीध में होते होते हैं. इन तिथियों में सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी के संयुक्त प्रभाव के कारण ज्वार की ऊँचाई सामान्य ज्वार से 20% अधिक होती है. इसे वृहद् ज्वार या उच्च ज्वार कहते हैं.

2. लघु या निम्न ज्वार (NEAP TIDE)

शुक्ल या कृष्ण पक्ष की सप्तमी या अष्टमी को सूर्य और चंद्रमा पृथ्वी के केंद्र पर समकोण बनाते हैं. इस कारण सूर्य और चंद्रमा दोनों ही पृथ्वी के जल को भिन्न दिशाओं में आकर्षित करते हैं. फलतः इस समय उत्पन्न ज्वार औसत से 20% कम ऊँचे होते हैं. इसे लघु या निम्न ज्वार कहते हैं.

3. दैनिक ज्वार (DIURNAL TIDE) :

स्थान पर दिन में केवल एक बार ज्वार-भाटा आता है, तो उसे दैनिक ज्वार-भाटा कहते हैं. दैनिक ज्वार 24 घंटे 52 मिनट के बाद आते हैं. मैक्सिको की खाड़ी और फिलीपाइन द्वीप समूह में दैनिक ज्वार आते हैं.

4. अर्द्ध-दैनिक ज्वार (SEMI-DIURNAL) :

जब किसी स्थान पर दिन में दो बार (12 घंटे 26 मिनट में) ज्वार-भाटा आता है, तो इसे अर्द्ध-दैनिक ज्वार कहते हैं. ताहिती द्वीप और ब्रिटिश द्वीप समूह में अर्द्ध-दैनिक ज्वार आते हैं.

5. मिश्रित ज्वार (MIXED TIDE) :

जब समुद्र में दैनिक और अर्द्ध दैनिक दोनों प्रकार के ज्वार-भाटा का अनुभव लेता है, तो उसे मिश्रित ज्वार-भाटा कहते हैं.

6. अयनवृत्तीय और विषुवत रेखीय ज्वार :

चंद्रमा के झुकाव के कारण जब इसकी किरणें कर्क या मकर रेखा पर सीधी पड़ती हैं, जो उस समय आने-वाले ज्वार को अयनवृत्तीय कहते हैं. इस अवस्था में ज्वार और भाटे की ऊँचाई में असमानता होती है. जब चाँद की किरणें विषुवत रेखा पर लम्बवत पड़ती है तो उस समय जवार-भाटे की स्थिति में असमानता आ जाती है. ऐसी अवस्था में आने वाले ज्वार को विषुवत रेखीय ज्वार कहते हैं.


ज्वार भाटा से संबंधित कुछ रोचक तथ्य :

  1. चंद्रमा सूर्य से 2.6 लाख गुना छोटा है लेकिन सूर्य की तुलना में 380 गुना पृथ्वी के अधिक समीप है. फलतः चंद्रमा की ज्वार उत्पादन की क्षमता सूर्य की तुलना में 2.17 गुना अधिक है.
  2. पृथ्वी का जो सतह है, surface है…वह अपने केंद्र की तुलना में चंद्रमा से लगभग 6400 km. निकट है. अतः पृथ्वी के उस भाग में जो चाँद के सामने होता है, आकर्षण अधिकतम होता है और ठीक उसके दूसरी ओर न्यूनतम.
  3. इस आकर्षण के प्रभाव के कारण चंद्रमा के सामने स्थित जलमंडल का जल ऊपर उठ जाता है, जिसके फलस्वरूप वहाँ ज्वार आता है.
  4. दो ज्वार वाले स्थानों के बीच का जल ज्वार की ओर खिंच जाने के कारण बीच में समुद्र का तल सामान्य से नीचे चले जाता है, जिससे वहाँ भाटा उत्पन्न होता है.
  5. एक दिन में प्रत्येक स्थान पर सामान्यतः दो बार ज्वार एवं दो बार भाटा पृथ्वी की घूर्णन के कारण आता है.
  6. खुले सागरों में कम ऊँचा ज्वार उत्पन्न होता है, कयोंकि वहाँ जल निर्बाध रूप से बहता है । इसके विपरीत स्थल का सहयोग मिलने के कारण समुद्रों और खाडि़यों पर ऊँचे ज्वार उठते हैं ।
  7. खुल सागरों में ज्वार की ऊँचाई में अन्तर कम पाया जाता है । जबकि ऊथले समुद्र और खाड़ी में ज्वार का अन्तर अधिक होता है ।
  8. ज्वार की ऊँचाई पर तट रेखा का प्रभाव पड़ता है ।
  9. ज्वार-भाटा का समय प्रत्येक स्थान पर अलग-अलग होता है ।

ज्वार भाटा के लाभ या महत्व -

ज्वार-भाटा मनुष्य की निम्न प्रकार से सहायता करते है -(1) ये नदियों द्वारा लाये गये कचरों को बहाकर साफ कर देते हैं, जिससे डेल्टा के बनने की गति धीमी हो जाती है ।
(2) ज्वारीय तरंगें नदियों के जल स्तर को ऊपर उठा देती हंै जिससे जलयान आंतरिक बंदरगाहों तक पहुँच पाते हैं ।
(3) ज्वार-भाटा का उपयोग मछली पालने तथा मछली पकड़ने के लिए किया जाता है ।
(4) फ्रांस तथा जापान में ज्वारीय ऊर्जा पर आधारित विद्युत केन्द्र स्थापित किये गये हैं।


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AUTHOR : MR. SURAJ SINGH JOSHI

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