हेल्लो दोस्तों ! नमस्कार . 

इस post में हम आपको एक मजेदार टॉपिक को समझाने जा रहे है . जिसका नाम है SEMICONDUCTER या अर्धचालक , इस टॉपिक के अंतर्गत आज हम सीखेंगे की .. 

१. अर्धचालक क्या है ?
2. अर्धचालक कितने प्रकार के होते है या कौन कौन से होते है .
३. N - TPYE और P - TYPE अर्धचालक क्या होते है ?
४ . अर्धचालक N TYPE और P TYPE अर्धचालक के बिच अंतर .
५ . अर्धचालकों का उपयोग .
६. अर्धचालकों के गुण क्या क्या होते है ?
7 . अर्धचालकों का उदाहरण दीजिये 

तो चलिए दोस्तों इन सबके बारे में विस्तार से पढ़ते है . और पूरी जानकारी रकते है अर्धचालकों के बारे में ..

१. )अर्धचालक क्या है ? WHAT IS SEMICONDUCTER ?

अर्धचालक , चालाक और विद्धुत रोधी पदार्थों के अतिरिक्त इस पर्यावरन में कुछ ऐसे भी पदार्थ होते है जिनकी प्रतिरोधकता या रेसेंसिविटी चालक ( कंडक्टर ) और विद्धुत रोधी ( (इन्सुलेटर ) पदार्थों के मध्य होती है . जिससे ये पदार्थ ना तो पूर्णतः चालक होते है और नही ये पदार्थ पूर्णः कुचलक होते है .  इन्ही पदार्थों को अर्धचालक या semiconductor पदार्थ कहा जाता है . 

ऊर्जा बैंड धारणा के अनुसार साधारण कमरे के ताप पर अर्धचालक पदार्थ ( semiconductor materials ) वे हैं जिनके  चालन (conduction) व संयोजी बैंड ( balance band ) आंशिक रूप से भरे हुए हो।   जिनके मध्य का निषिद्ध ऊर्जा बैंड (Forbidden energy band) काफी संकरा लगभग एक इलेक्ट्रॉन वोल्ट की कोटि का हो, 

जैसे- जर्मेनियम के लिए यह 0.75 इलेक्ट्रॉन वोल्ट तथा सिलिकॉन के लिए लगभग 1.12 इलेक्ट्रॉन वोल्ट की कोटि का होता है।

2. अर्धचालकों के गुण :

 आइये अर्धचालकों के कुछ विशेष गुणों के बारे में जानते है , ये गुण सभी प्रकार के अर्धचालकों में लगभग सामान रूप से पाया जाता है . इसी गुणों के पाए जाने पर हि कीसी पदार्थ को अर्धचालक पदार्थ कहा जाता है या उनकी अर्धचालक के रूप में पहचान किया जा सकता है . 

अर्धचालकों के ये गुण निम्नलिखित है - 

  • परम्शुन्य तापमान पर अर्धचालक पदार्थ कुचलक की तरह व्यव्हार करते है . जबकि कमरे के तापमान पर ये  चालकता का गुण प्रदर्शित करते है .
  • अर्धचालकों के एकांक आयतन में मुक्त elctrons की संख्या चालकों या conducter से कम तथा विद्धुत रोधी पदार्शों से अधिक होता है . साधारण ताप में किसी अर्थ्चालक के एकांक आयतन में मुक्त electron की संख्या १० के ( घात 18 ) हो सकती है और प्रतिरोधकता 10 के ( घात -2 ) से १ qm तक हो सकती है . 
  • जिन पदार्थों के नाभिकीय स्ट्रक्चर में बाहरी कक्षा में 4 electron पाए जाते है वे अर्धचालक पदार्थ होते है . 
  • अर्धचालकों की प्रतिरोधकता कुचालकों से कम और और चालकों या सुचालकों से अधिक से अधिक होती है .
  • अर्धचालक पदार्थों को वोल्टेज shource ( स्रोत ) से जोड़ने पर करंट ( या धारा ) का मान बढ़ता है . और प्रतिरोधकता ( resistivity ) का मान कम होता है या घटता है . 
  • अर्धचालकों में निश्चित मात्रा में अशुद्धियाँ मिलाकर विभिन्न प्रकार की मिश्र धातुए आसानी से निर्माण किया जा सकता है , जिनका गुण बहुत उच्च होता है . जो मजबूत और टिकाऊ होता है , इनका उपयोग बर्तन निर्माण में अधिकतर किया जाता है . असुद्धि मिलाने की प्रक्रिया को डोपिंग कहा जाता है . 
  • अर्धचालकों का प्रतिरोध ताप गुणांक ऋणात्मक होता है क्यों की ताप बढ़ाने पर अर्धचालकों की प्रतिरोधकता घट ( कम ) हो जाती है . और विद्युत चालकता बढ़ जाती है . 
  • अर्धचालकों की चालकता को बाहरी विद्युत् क्षेत्र या प्रकाश द्वारा भी परिवर्तित किया जा सकता है . 
3. अर्धचालकों के उदहारण : 
जर्मेनियम ( GE ) और सिलिकान (SI ) अर्धचालकों के मुख्य उदहारण है . इसके अतिरिक्त अन्य अर्धचालकों के उदहारण निम्न लिखित है -

अर्धचालक के प्रकार (Type of semiconductor in hindi):

अर्धचालक दो प्रकार के होते हैं-

1. निज अर्धचालक (Intrinsic Semiconductor in hindi):

अर्धचालक जिसमें कोई भी अशुद्धियां या अपद्रव्य ना मिला हो उसे निज अर्धचालक कहते हैं। इस प्रकार शुद्ध जर्मेनियम तथा सिलिकॉन अपनी प्राकृतिक अवस्था में निज अर्धचालक हैं। इस प्रकार के अर्धचालक में electron को valace band से conduction (चालन बैंड ) जाने के लिए पर्याप्त तापीय प्रक्षोभ ( thermal agitation) की आवश्यकता होती है . जैसे हि temprature ज्यादा हो जाता है इन पदार्थों में चालकता का गुण आ जाता है . परन्तु ताप कम किए जाने पर विद्धुत रोधी की भाती व्यव्हार करते है .  इन पदार्थों का प्रतिरोध ताप गुणांक ऋणात्मक होता है .

आंतरिक या निज अर्धचालक मे ताप जितना अधिक होगा स्वतंत्र electron और विवर ( होल ) उतने हि अधिक होंगे . आतरिक अर्धचालक में tamprature अधिक होने पर electron परमाणु से सह संयोजक बंध तोड़कर स्वतंत्र हो जाता है और अपने पीछे रिक्त स्थान ( विवर) छोड़ देता है . अर्थात electron की हानि होता है विवर के बनने से . स्वतंत्र electron और विवर मिलकर जोड़ा बना लेते है .

अब हम आंतरिक अर्धचालकों में धारा प्रवाहित करें तो हम निष्कर्ष में यह पाते है की करंट 2 दो दिशाओं में बहने लगता है . जिसमे सर्किट की टोटल करंट ( कुल धारा ) दोनो दिशाओं में प्रवाहित धाराओं के योग के बराबर होता है .  स्वतंत्र electron और होल दोनों हि एक दुसरे के विपरीत दिशाओं में गति करते है . साथ हि दोनों की संख्याए भी सामान होती है . 

2. बाह्य अर्धचालक (Extrinsic Semiconductor in hindi):

जब आंतरिक अर्धचालक पदार्थ में  विशेष उद्देश्य से निश्चित मात्रा में अशुद्धियाँ मिलायी जाती है तो इन्हें बाह्य अर्धचालक कहा जाता है . इस प्रकार अशुद्धियाँ मिलाने की प्रक्रिया को  डोपिंग कहा जाता है . जिस सीमा तक पदार्थ मिलाया जाता है उसे डोपिंग स्तर कहा जाता है . 
अर्धचालक पदार्थ शुद्ध अवस्था में या आंतरिक अर्धचालक के रूप में विद्धुत रोधी की भांति व्यव्हार दर्शाते है जिससे इनका उपयोग सिमिति होता है .  जिस कारन से डोपिंग की तकनीक को विकसित किया गया है . 

निज अर्धचालकों की वैद्युत चालकता बहुत कम होती है। परंतु यदि किसी ऐसे पदार्थ को बहुत थोड़ी सी मात्रा, जिसकी संयोजकता 5 अथवा 3 हो, शुद्ध जर्मेनियम अथवा सिलिकॉन क्रिस्टल में अशुद्धि के रूप में मिश्रित करते है तो क्रिस्टल की चालकता काफी बढ़ जाती है।

मिश्रित करने की प्रक्रिया को डोपिंग (Doping) कहते हैं। ऐसे अशुद्ध अर्धचालक को बाह्य अर्धचालक कहते हैं

बाह्य अर्धचालकों के प्रकार ( types of extrinsic semiconducter in hindi ) :

बाह्य अर्धचालकों में मिलायी जाने वाली अशुद्धियों के आधार पर बनने वाले बाह्य अर्धचालकों को 2 भाग में बाटा गया है जो की निम्न लिखित है -
१. एन टाइप अर्धचालक ( N - type Semiconductor )
2. पी टाइप अर्धचालक ( P - Type Semiconductor)

1. N - Type Semiconductor ( एन टाइप अर्धचालक ) :

शुद्ध अर्धचालक को जब अधिक उपयोगी बनाने के उद्देश्य से इसमें पांचवे ग्रुप का कोई तत्वा जैसे आर्सेनिक ( 33 ) , एन्टिमनी ( 51 ), फास्फोरस ( 15 ) आदि को मिलाया जाता है तो इसके कारन अर्धचालक की विद्धुत चालकता बढ़ जाती है . इस प्रकार के अर्धचालकों को एन टाइप अर्धचालक ( N - Type Semiconductor ) कहते है .

जब किसी जर्मेनियम अथवा सिलिकॉन क्रिस्टल में पांच संयोजकता वाला अपद्रव्य परमाणु मिलाया जाता है तो तो वह जर्मेनियम के एक परमाणु को हटाकर उसका स्थान ले लेता है।
N - TYPE SEMICONDUCTOR IN HINDI 

माना जर्मेनियम ( Ge) में अल्प मात्रा में आर्सनिक मिलाया जाता है , चूँकि आर्सनिक पांच संयोजी होने के कारन यह जर्मेनियम के चार परमाणुओं से मिलकर सहसंयोजक बंध बना लेता है तथा तथा आर्सनिक का एक शेष electron मुक्त हो जाता है . जो बहुत कम ऊर्जा देने पर बाहर निकल जाता है .

5 वें मुक्त electron को पूरी तरह से मुक्त करने के लिए जरुरी उर्जा को साधारण ताप पर हि प्राप्त कर लिया जाता है . ये मुक्त electron धारा प्रवाह में सहायक होता है . और एक electron देकर आर्सेनिक का प्रत्येक परमाणु धनायन बन जाता है . अतः इस प्रकार के अशुद्धि को दाता अशुद्धि ( donar impurity ) कहते है . तथा इस प्रकार दाता अशुद्धि युक्त अर्धचालक को एन टाइप अर्धचालक ( N type semiconductor ) कहा जाता है .
N - Type Semiconductor में मुक्त electron की संख्या विवरों की संख्या से अधिक होती है . अतः जब अर्धचालकों के सिरों पर वोल्टेज जोड़ दिया जाता है तो इसमें धारा प्रवाह का कारन electron न होकर के होल ( विवर ) होते है

2. पी - टाइप अर्धचालक (P - type Semiconductor ) :

जब किसी शुद्ध अर्धचालक जैसे जर्मेनियम ( Ge ) या सिलिकॉन ( Si ) के साथ किसी तत्व की त्रिसंयोजी अशुद्धि जैसे ईन्डीयम , बोरान या एल्युमिनियम मिलायी जाती है तो उसकी चालकता बढ़ जाती है . इस प्रकार के अर्धचालक को पी टाइप अर्धचालक ( p type semiconductor ) कहा जाता है .

जब जर्मेनियम में अल्प मात्रा में इंडियाम को मिलाया जाता है तो अशुद्धि की मात्रा बहुत कम होने के कारन प्रत्येक जर्मेनियम परमाणु को ईण्डीयम परमाणु घेर लेता है . क्यूंकि ईण्डीयम परमाणु में तिन संयोजी electron होता है . अतः ये तिन electron जर्मेनियम के ३ electron के साथ सह संयोजक बंध बना लेता है . किन्तु जर्मेनियम का चौथा परमाणु इन्डियम परमाणु के साथ सह संयोजक बंध नहीं बना पाता है . क्योंकि इन्डियम की बाह्य कक्षा में चौथा electron नहीं पाया जाता है . इसे चित्र में दिखाया गया है .  
P - TYPE SEMICONDUCTOR      #GKPADHOINDIA

 

इस प्रकार इन्डियम परमाणु में एक electron की कमी यह जाती है . इसी कमी को पुरा करने के लिए जर्मेनियम ( ge ) से एक electron ग्रहण कर लेता है या accept कर लेता है . जिससे सह संयोजक बंध पूरा हो जाता है .
जब निकट के सह संयोजक बंध के एक electron इन्डियम परमाणु के चौथे अपूर्ण बंध को पुरा करता है तो निकट के बंध में एक electron की कमी हो जाती है . जिससे उस स्थान पर विवर या होल बन जाते है . इसके साथ इन्डियम में एक electron आने से यह ऋणात्मक आयन हो जाता है . ये ऋणात्मक आयन अचल होता है . क्योंकि यह क्रिस्टल संरचना में सह संयोजाक बंध से जुदा हुआ होता है . अतः अशुद्ध परमाणु क्रिस्टल से electron ग्रहण करके ऋणात्मक आयन बनते है इस लिए इन्हें स्वीकारक अशुद्धि ( acceptor impurity ) कहते है .

इस प्रकार पी टाइप अर्धचालक में होल ( विवर ) बहु संख्यक आवेश वाहक ( majority charge carrier ) होते है और electron अल्प संख्यक आवेश वाहक ( minority charge carrier ) होते है . पी टाइप अर्धचालक को चित्र में दिखाया गया है .

Diffrence between N type Simikanductor and P type Semicondouctor ( पी टाइप अर्धचालक और एन टाइप अर्धचालक में अंतर ) : 


एन टाइप अर्धचालक और पी टाइप अर्धचालक में प्रमुख अंतर निम्न लिखित है - 

S.N. Parameter N type Semiconductor P type Semiconductor
1 Farmi Level Fermi स्तर स्वीकर्ता ऊर्जा स्तर और वैलेंस बैंड के बीच स्थित है। फर्मी स्तर दाता ऊर्जा स्तर और चालन बैंड के बीच स्थित है।
2 मिलायी जाने वाली अशुद्धियाँ             शुद्ध अर्धचालक ( सिलिकॉन या जर्मेनियम ) में पंच संयोजी तत्व जैसे - एन्टिमनी , आर्सनिक आदि की अशुद्धि मिलाया जाता है . तब एन टाइप सेमीकंडक्टर का निर्माण होता है . पी टाइप सेमीकंडक्टर को बनाने के लिए  बोरान , इन्डियम जैसे त्रिसंयोजी धातुओं की अशुद्धियों को शुद्ध अर्धचालकों में मिलाया जाता है . 
3 विद्युत् धारा का प्रवाह  एन टाइप सेमीकंडक्टर में विद्युत् धारा का प्रवाह एलेक्ट्रोनों के कारन होता है .     पी टाइप सेमीकंडक्टर ( p type अर्धचालकों ) में धारा का प्रवाह विवरों या hole के कारन होता है . 
4 संयोजकता band में hole या विवरों की संख्या चालन band में इलेक्ट्रोनों की संख्या से कम होती है .  इसके संयोजकता band में विवरों की संख्या चालन band में इलेक्ट्रान की संख्या से कम होती है . 
5 फर्मी स्तर ( farmi Level )  इस प्रकार के अर्धचालक में फर्मी स्तर संयोजकता band की तरफ होता है .   पी टाइप अर्धचालकों में फर्मी स्तर ( farmi level ) चालन band की ओर होता है .
6 Accepter Vs Donor  एन टाइप अर्धचालकों में ऋणआयनों की संख्या अधिक होने के कारन इन्हें डाटा या ( डोनर Donor ) कहा जाता है .  पी टाइप अर्धचालकों में धनायनों की संख्या अधिक होने के कारण इन्हें स्वीकारक या acceptor कहा जाता है . 
7 विवर और electron पर आवेश  एन टाइप ( n type ) अर्धचालकों में उपस्थित इलेक्ट्रानो पर ऋण आवेश होता है .  पी टाइप अर्धचालक ( P type semiconducter ) में उपस्थित होलो (विवर ) में धनावेश होता है . 
8 मुक्त इलेक्ट्रान  एन टाइप अर्धचालक ( N type semiconducter ) में एक मुक्त electron होता है .   पी टाइप अर्धचालकों ( p type semiconducter ) में कोई मुक्त electron नही होता है .
9 अधिकांश मालवाहकों का आंदोलन अधिकांस मालवाहक निम्न से उच्च क्षमता की ओर बढ़ते है .   इस प्रकार के अर्धचालक में अधिकांस वाहक उच्च से निम्न क्षमता की ओर बढ़ते है . 
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Uses of Semiconductors ( अर्धचालकों का अनुप्रयोगों ) :

अर्धचालक का उपयोग व्यापक रूप से इलेक्ट्रॉनिक ( Electronic )  डिवाइसों के निर्माण में कच्चे माल के रूप में किया जाता है जो हमारे दैनिक जीवन का हिस्सा हैं . जैसे की एकीकृत सर्किट . 

  एक एकीकृत सर्किट के मुख्य तत्वों में से एक ट्रांजिस्टर हैं। ये उपकरण एक विशिष्ट इनपुट सिग्नल के अनुसार आउटपुट सिग्नल (ऑसिलेटरी, एम्प्लीफाइड या रेक्टिफाइड) प्रदान करने का कार्य पूरा करते हैं.

अर्धचालक युक्तियों के उदहारण : 

    दो टर्मिनल वाली युक्तियाँ

    • डायोड (रेक्टिफायर डायोड)
    • गन्न डायोड
    • इंपैट डायोड
    • लेज़र डायोड
    • प्रकाश उत्सर्जक डायोड
    • फोटोसेल
    • पिन डायोड
    • शोटकी डायोड
    • सौर फोटो वोल्टायिक सेल
    • टनल डायोड
    • ऊर्ध्वाधर-क्षिद्र सतह-स्कंदन लेसर (VCSEL)
    • ऊर्ध्वाधर-बाह्य-क्षिद्र सतह-स्कंदन लेसर (VECSEL)
    • जे़नर डायोड
    • अवलांच ब्रेकडाउन डायोड
    • डायक

    तीन टर्मिनल वाली युक्तियाँ

    • बीजेटी
    • डार्लिंटन ट्रांज़िस्टर
    • क्षेत्र प्रभाव ट्रांज़िस्टर
    • आईजीबीटी (IGBT)
    • सिलिकॉन कन्ट्रोल्ड रेक्टिफायर (SCR)
    • थाइरिस्टर
    • ट्रायक
    • एकिक जोड ट्रांज़िस्टर

    चार टर्मिनल वाली युक्तियाँ

    • हॉल संवेदक (चुम्बकीय क्षेत्र संवेदक)

    बहु-टर्मिनल युक्तियाँ

    • आवेश-युग्मित युक्ति (CCD)
    • एकीकृत परिपथ (IC)
    • माइक्रोप्रोसेसर
    • यादृच्छिक अभिगम स्मृति (RAM)
    • केवल पठीय स्मृति (ROM)

    इस post में आपने जाना -

    1. अर्धचालक क्या है ? 
    2. अर्धचालकों के प्रकार कौन कौन से है या अर्धचालक कितने प्रकार के पाए जाते है  ?
    3. N - टाइप और P - टाइप अर्धचालको का निर्माण कैसे किया जाता है ?
    4. N - टाइप और P - टाइप अर्धचालक में अंतर कौन कौन से है ?
    5. अर्धचालकों का उपयोग .
    6. अर्धचालकों के गुण क्या क्या होते है ?
    7 . अर्धचालकों युक्तियों का उदाहरण ? 
    8 . अर्धचालकों के अनुप्रोग 

    तो दोस्तों ! कैसा लगा आपको आज का हमारा यह टॉपिक जो की पूरी तरह से अर्धचालक के ऊपर आधारित था . मुझे पूरा यकींन है की आपको यह post पढकर जरुर अर्धचालक के बारे में पूर्ण जानकारी प्राप्त हो गया होगा . यदि आपके मन में किसी भी प्रकार की सवाल या हमारे लिए कोई सुझाव हो तो आप हमसे साइड comment के द्वारा या ईमेल के द्वारा share कर सकते है .

    धन्यवाद् . 
    #gkpadhoindia

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    AUTHOR : MR. SURAJ SINGH JOSHI

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